रतन टाटा जो न सिर्फ एक नाम है बल्कि भारत को वैश्विक स्तर की ऊंचाइयों तक पहुंचाने वाले वह महान शख्सियत हैं जिनका बीते दिनों 9 अक्टूबर को निधन हो गया। लगभग दो दशक तक टाटा ग्रुप के चेयरमैन बनकर उन्होंने कंपनी को दुनिया भर में पहचान दिलाई जिसके साथ-साथ भारत का कीर्ति पताका भी उन्होंने दुनिया में लहरा दिया। इस तरह के व्यक्तित्व का दुनिया को अलविदा कहना भारत देश की अपूरणीय क्षति है।
उनके निधन के बाद से देश के बड़े गणमान्य लोगों सहित आम लोगों ने भी अपना दुःख व्यक्त किया है। इसी के साथ ऐसी जानकारी भी मिल रही है की महाराष्ट्र कैबिनेट ने मरणोपरांत रतन टाटा को भारत रत्न देने की मांग की है। अफ़सोस की बात है की जो इंसान जीवित होता है हमें उनकी कदर नहीं होती और जैसे ही उनकी मृत्यु हो जाती है, उनके लिए बड़ी-बड़ी दुहाई देने लगते हैं।
28 दिसंबर को मुंबई में जन्मे रतन टाटा ने अपनी शुरूआती पढ़ाई मुंबई और शिमला में पूरी की जिसके बाद वह आगे की पढाई के लिए न्यूयॉर्क चले गए। ऐसा कहा जाता है की वह अपने पिता की मर्ज़ी के खिलाफ मैकेनिकल इंजीनियरिंग करने गए थे। हालांकि उन्होंने 1962 में आर्किटेक्चरल प्रोग्राम के तहत कॉर्नेल यूनिवर्सिटी से स्नातक की डिग्री प्राप्त की। इस लेख में हम उनके जीवन से जुडी कुछ रोचक किस्सों को साझा करेंगे, आशा है आपको यह प्रेरणा देंगे।
अधूरे प्यार के सहारे ज़िन्दगी गुज़ार दी
रतन टाटा की शादी नहीं हुई थी। लेकिन उनके हिस्से में भी एक समय ऐसा आया था जब उन्हें प्यार हुआ था। बात उन दिनों की है जब वह लॉस एंजिलिस में एक कंपनी में काम करते थे और उसी दौरान उन्हें एक लड़की से प्यार हो गया था। उन दोनों ने शादी करने का भी फैसला कर लिया था लेकिन अचानक ही उनकी दादी की तबियत खराब हो गयी और उन्हें वापस भारत लौटना पड़ा। उस दौरान रतन टाटा को ऐसा लगता था की वह जिस लड़की से प्यार करते हैं वह भी उनके साथ भारत आ जाएगी लेकिन सन 1962 में हुए भारत-चीन की लड़ाई के चलते लड़की के माता-पिता ने उनकी प्रेमिका को भारत आने नहीं दिया और इस कारण उन दोनों के प्यार का रिश्ता वहीं टूट गया।
अपने प्यार को याद करते हुए रतन टाटा ने एक बात कही थी जिसमे वह कहते हैं, ” आप नहीं जानते की अकेले रहना कैसा होता है? जब तक आप अकेले समय बिताने के लिए मजबूर नहीं होते हैं तब तक आपको एहसास भी नहीं होता है। “
बड़ी-बड़ी विदेशी कंपनियों को चुटकियों में सबक सिखाया
रतन टाटा ने बिज़नेस में ऐसे कई कीर्तिमान स्थापित कर दिए जो शायद ही कोई कर सकेगा। सिर्फ यही नहीं बल्कि उन्होंने कई विदेशी बड़ी कंपनियों को पल भर में खरीद कर टाटा ग्रुप में शामिल भी करवा लिया। रतन टाटा के द्वारा सन 2000 में टाटा टी द्वारा 450 मिलियन डॉलर में ब्रिटिश चाय कंपनी टेटली का अधिग्रहण कर लिया गया। किसी भारतीय कंपनी के द्वारा अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर यह सबसे बड़ा अधिग्रहण था।
ऐसे ही सन 2007 में टाटा स्टील ने 6 2 बिलियन पाउंड में यूरोप की दूसरी सबसे बड़ी स्टील कंपनी कोर्स को टाटा ग्रुप में शामिल कर उसका अधिग्रहण कर लिया। उस समय भारतीय स्टील उद्योग के द्वारा यह बहुत बड़ा सौदा था।
इसी तरह सन 2008 में टाटा मोटर्स ने 2 3 बिलियन अमेरिकी डॉलर में विश्व भर में प्रतिष्ठित ब्रिटिश कार ब्रांड जगुआर और लैंड रोवर का अधिग्रहण कर लिया। इस कंपनी के अधिग्रहण के बाद ना सिर्फ भारत का डंका बजा बल्कि वैश्विक बाज़ार में टाटा कंपनी को और मज़बूती मिली।
गरीबों का सपना, नैनो अपना
लैंड रोवर और जगुआर जैसी कंपनी का अधिग्रहण करने के बाद समाज सेवा और गरीब लोगों की भलाई के लिए टाटा ग्रुप ने पहली बार 2008 में नैनो कार को ऑटो एक्सपो में पेश किया। यह कार विशेष रूप से उन परिवारों के लिए लाई गयी थी जो आर्थिक रूप से बस एक मोटरसाइकिल तक की कीमत अफ़्फोर्ड कर सकते थे। उसी कीमत में लोगों को कार मिल सके, इस सपने को लेकर रतन टाटा ने नैनो कार को लांच किया था। इस कार के लांच होने के बाद लोगों के बीच यह चर्चा का विषय बन गयी थी।
‘फोर्ड’ से लिया बदला
कुछ साल पहले बिड़ला टेक्नोलॉजी के चेयरमैन वेदांत बिड़ला ने X पर एक कहानी सुनाई थी और वह कहानी थी रतन टाटा का फोर्ड से बदला। यह बात थी सन 1998 की। उस समय टाटा मोटर्स ने भारत की पहली स्वदेशी कार टाटा इंडिका लांच की थी। इंडिका गाडी रतन टाटा का एक ड्रीम प्रोजेक्ट था। हालांकि इस प्रोजेक्ट को उतनी सफलता नहीं मिल सकी और कंपनी घाटे में चली गयी। पर्याप्त बिक्री ना होने के कारण टाटा मोटर्स अपने मोटर के कारोबार को बेचना चाहती थी। इसी सिलसिले में अमेरिका की बड़ी कार निर्माता कंपनी ‘फोर्ड’ से रतन टाटा ने 1999 में बात करनी शुरू की।
इस सिलसिले में रतन टाटा अपनी टीम के साथ अमेरिका भी गए थे ताकि वहाँ फोर्ड के चेयरमैन बिल फोर्ड से बात की जा सके। मीटिंग तय हुई लेकिन इस मीटिंग के दौरान रतन टाटा को अलग तरह से अपमानित किया गया। बिल ने रतन टाटा से कहा की उन्हें कार व्यवसाय में कभी उतरना ही नहीं चाहिए था। बिल ने अपमानित करने के लहज़े में रतन टाटा से कहा की तुम इस बारे में कुछ भी नहीं जानते। इसके साथ ही बिल ने कहा की अगर वह ये सौदा करेंगे तो यह रतन टाटा पर अहसान होगा।
ज़ाहिर है इतने अपमानित होने के बाद एक स्वाभिमानी व्यक्ति यह करार तोड़ देगा और ऐसा ही हुआ। जिसके बाद रतन टाटा ने अपना फैसला बदलते हुए इंडिका की प्रोडक्शन यूनिट बेचने से मना कर दिया। इसके बाद जो हुआ वह अपने आप में एक ऐतिहासिक लम्हा बन गया। लगभग 9 साल के अंदर ही टाटा के लिए सभी चीज़ें बदल गयी। वही दूसरी तरफ ‘फोर्ड’ सन 2008 की मंदी के बाद दिवालिया होने की कगार पर खड़ा हो गया। जिसके बाद रतन टाटा ने फोर्ड के दो पॉपुलर ब्रांड, जगुआर और लैंड रोवर खरीदने की पेशकश कर दी। जिसके बाद जून 2008 में टाटा ने 2 3 बिलियन डॉलर में दोनों को खरीद लिया।
इस घटना के बाद टाटा ने अपना बदला पूरा किया। ऐसा कहा जाता है की फोर्ड के चेयरमैन बिल फोर्ड ने रतन टाटा से धन्यवाद भरे लहज़े में कहा था की आप इन्हे खरीद कर हम पर उपकार कर रहे हैं। इस खरीद के बाद टाटा कंपनी ने इन दोनों बिज़नेस को प्रॉफिट में बदल दिया।
जब इंसान ज़िद पर आ जाए तो क्या नहीं कर सकता और यही कारण है की रतन टाटा ने भारत के साथ-साथ अपनी कंपनी को भी उस ऊंचाई पर पहुंचा दिया जिसपर पहुंचना हर किसी के बस की बात नहीं होती। इतना सब कुछ होने के बाद भी रतन टाटा ने बहुत ही सादा जीवन व्यतीत किया और कभी भी लक्ज़री लाइफ को तरजीह नहीं दी। यही कारण है की वह दुनिया छोड़ने के बाद भी लोगों के दिलों में वैसे ही अमर रहेंगे जैसे धड़कन से सांसें।